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दूरी तथा विस्थापन Distance and Displacement

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दूरी तथा विस्थापन Distance and Displacement दूरी -:   दिए गए समय अंतराल में गतिमान कण द्वारा तय किए गए वास्तविक पथ की लम्बाई को दूरी कहते है। यह एक अदिश राशि है। इसका मात्रक मीटर है। विस्थापन-:   किसी वस्तु के स्थिति सदिश में परिवर्तन को उसका विस्थापन कहते है। यह एक सदिश राशि है। इसका मात्रक मीटर है। दूरी तथा विस्थापन के बीच तुलना 1- विस्थापन का परिमाण , दो स्थितियों के बीच न्यूनतम संभव दूरी के बराबर होता है , जबकि दूरी दो स्थितियों के बीच की अधिकतम माप होती है। अतः दूरी ≥ विस्थापन   चित्र में A से C तक के मार्ग के लिए दूरी 3 + 4 = 7 m तथा विस्थापन 5 m 2- गतिमान कण के लिए दूरी कभी ऋणात्मक अथवा शून्य नहीं हो सकती जबकि विस्थापन हो सकता है। 3- दो बिंदुओं के मध्य गति के लिए विस्थापन अद्वितीय फलन होता है , जबकि दूरी वास्तविक पथ पर निर्भर करती है तथा इसके अनन्त मान हो सकते है। 4- गतिमान कण के लिए दूरी समय के साथ कभी घट नहीं सकती जबकि विस्थापन समय के साथ घट सकता है। समय के साथ विस्थापन के घटने का अर्थ है कि वस्तु प्रारम्भिक बिन्दु की ओर गतिमान है। 5- सामान्यतः विस...

कण अथवा बिन्दु द्रव्यमान Particle or Point Mass

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कण अथवा बिन्दु द्रव्यमान Particle or Point Mass पदार्थ का सबसे सूक्ष्म भाग जिसकी विमाएं शून्य हो तथा जिसे द्रव्यमान तथा स्थिति से अभिव्यक्त किया जा सके कण अथवा बिन्दु द्रव्यमान कहलाता है। यदि वस्तु का आकार , वस्तु द्वारा तय की गई दूरी की तुलना में नगण्य हो तो इसे कण कहते है। एक वस्तु को कण कहा जाना , गति के प्रकार पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए सूर्य के चारों ओर ग्रहों की गति में विभिन्न ग्रहों को कण माना जा सकता है। उपरोक्त अवधारणा में जब किसी वस्तु को कण मानते है तो वस्तु के सभी भागों में विस्थापन , वेग तथा त्वरण समान होता है।   

विराम तथा गति Rest and Motion

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विराम तथा गति Rest and Motion जब कोई वस्तु समय के साथ दिए गए निर्देश तंत्र के सापेक्ष अपनी स्थिति नहीं बदलता तो यह विराम में कही जाती है तथा इसके विपरीत यदि कोई वस्तु समय के साथ निर्देश तंत्र के सापेक्ष अपनी स्थिति बदलती है तो यह गति कही जाती है। अतः विराम तथा गति सापेक्ष पद है , जो कि निर्देश तंत्र पर निर्भर करती है। समय के साथ निर्देश तंत्र की X- अक्ष , Y- अक्ष तथा Z- अक्ष के सापेक्ष स्थिति परिवर्तन के आधार पर गति तीन प्रकार की होती है- एक विमीय गति द्विविमीय गति त्रिविमीय गति   एक विमीय गति सरल रेखा में वस्तु की गति एकविमीय गति कहलाती है। एकविमीय गति में वस्तु निर्देश तंत्र की किसी एक अक्ष के अनुदिश गतिमान होती है जैसी X- अक्ष के अनुदिश कोई वस्तु जब गतिमान होती है तो वस्तु की यह गति एकविमीय गति कहलाती है। उदारहरण- 1- सीधी सड़क पर कर की गति 2- मुक्त रूप से गिरती वस्तु की गति   द्विविमीय गति समतल में वस्तु की गति द्विविमीय गति कहलाती है। द्विविमीय गति में गतिमान वस्तु निर्देश तंत्र की किन्हीं दो अक्षों के साथ समय परिवर्तन पर अपनी स्थिति को परिवर्तित करती है।...

स्थिति एवं निर्देश तंत्र Position or Frame

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स्थिति Position स्वयं से किसी वस्तु की दिशा एवं दूरी का निर्धारण करना उस वस्तु की स्थिति कहते है। जैसे जब हम किसी अज्ञात स्थान के बारे में जानकारी करते है तो सबसे पहले यह जाना जाता है की वह स्थान किस दिशा में है और फिर उसकी दूरी जानकार हम उस स्थान का सही-सही ज्ञान कर लेते है। इस प्रकार दूरी ओर दिशा के द्वारा किसी वस्तु का सही-सही ज्ञान करना ही उस उस वस्तु की स्थिति निर्धारण कहलाता है। भौतिकी में किसी गतिमान वस्तु के बारे में किसी समय विशेष के बारे में जानकारी इसी विधि से प्राप्त की जाती है। निर्देश तंत्र   Frame  जब कसी वस्तु की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो हमें किसी एक विशेष स्थान को या बिन्दु को स्थिर मानना होता है। इस स्थिर बिन्दु को प्रेक्षण बिन्दु कहा जाता है। इसे O से निर्देशित किया जाता है। इस प्रेक्षण बिन्दु से तीन परस्पर लम्बवत दिशा का निर्धारण किया जाता है , जिन्हें क्रमशः X- अक्ष , Y- अक्ष तथा Z- अक्ष कहा जाता है। इस प्रकार निर्देश बिन्दु से किसी वस्तु की दिशा एवं दूरी का निर्धारण जिस भौतिक निकाय के द्वारा किया जाता है उसे निर्देश तंत्र कहते है। निर्देश त...

त्रुटियों का संयोजन Propagation of Errors

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  त्रुटियों का संयोजन Propagation of Errors जब कोई भौतिक राशि दो या दो से अधिक भौतिक राशियों पर निर्भर करती है तो उस राशि की माप में त्रुटि मान ज्ञात करना त्रुटियों का संयोजन कहलाता है। जोड़ , घटाव , गुणा भाग व घतीय गणनाओं के आधार पर त्रुटियों का संयोजन भी 5 प्रकार का होता है जो निम्न प्रकार है- राशियों के योग में त्रुटि राशियों के अन्तर में त्रुटि राशियों के गुणनफल में त्रुटि राशियों के विभाजन में त्रुटि घतीय फलन में त्रुटि राशियों के योग में त्रुटि जब किसी भौतिक राशि का परिमाण दो या दो से अधिक राशियों के योग पर निर्भर करता है तो इस प्रक्रिया में होने वाली त्रुटि योग त्रुटि कहलाती है। माना कोई राशि x राशि a व b से इस प्रकार सम्बन्धित है- x = a + b माना      ∆a = a ∆b = b तब ∆x = ∆a + ∆b तथा x के मान में अधिकतम निरपेक्ष त्रुटि x = [ ∆a + ∆b / a + b ] × 100%   राशियों के अन्तर में त्रुटि जब किसी भौतिक राशि का परिमाण दो या दो से अधिक राशियों के अन्तर पर निर्भर करता है तो इस प्रक्रिया में होने वाली त्रुटि अन्तर त्रु...

मापन में त्रुटि Errors of Measurement

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मापन में त्रुटि Errors of Measurement मापन की सार्थकता मापन उपकरण के अल्पतमांक पर निर्भर करती है। जितना छोटा अल्पतमांक होगा उतना ही सार्थक मापन होगा। इसके अलावा हमारे बहुत प्रयासों के बावजूद मापन की प्रक्रिया में स्वयं से भी कुछ न कुछ त्रुटि भी अवश्य हो जाती है। इन त्रुटियों के कारण राशि के वास्तविक मान तथा प्रायोगिक मान में जो अन्तर प्राप्त होता है उसे मापन की त्रुटि कहते है। यह चार प्रकार की होती है- निरपेक्ष त्रुटि माध्य निरपेक्ष त्रुटि आपेक्षिक त्रुटि या भिन्नात्माक त्रुटि प्रतिशत त्रुटि निरपेक्ष त्रुटि किसी भौतिक राशि के मापन में भौतिक राशि के वास्तविक मान तथा माप में प्राप्त मान का अन्तर निरपेक्ष त्रुटि कहलाता है।  माना एक भौतिक राशि को n बार मापा जाता है तथा इसके मापे गए मान a 1 , a 2 , a 3 , ……..,a n है तो इसके मानों का समान्तर माध्य  a m = ( a 1 + a 2 + a 3 +……..+ a n )/ n  समान्यतः a m को राशि का वास्तविक मान माना जाता है। अतः निरपेक्ष त्रुटि की परिभाषा से मापे गए मानों में निरपेक्ष त्रुटि निम्न होगी – ∆a 1 = a m - a 1 ∆a 2 = a m – ...

परिमाण की कोटि Order of Magnitude

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परिमाण की कोटि Order of Magnitude संख्याओं के वैज्ञानिक निरूपण में संख्याओं को 10 घातों के रूप में लिखा जाता है। 10 की घात का रूप ही परिमाण की कोटि कहलाती है। किसी राशि के परिमाण की कोटि लिखने के लिए निम्नलिखित नियम होते है- यदि 10 की घात के साथ गुणित संख्या 5 से छोटी है तो इसे छोड़ देते है।   यदि 10 की घात के साथ गुणित संख्या 5 अथवा 5 से बढ़ी है तो उसे छोड़ने से पहले 10 की एक घात को बढ़ा देते है।