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स्थिति एवं निर्देश तंत्र Position or Frame

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स्थिति Position स्वयं से किसी वस्तु की दिशा एवं दूरी का निर्धारण करना उस वस्तु की स्थिति कहते है। जैसे जब हम किसी अज्ञात स्थान के बारे में जानकारी करते है तो सबसे पहले यह जाना जाता है की वह स्थान किस दिशा में है और फिर उसकी दूरी जानकार हम उस स्थान का सही-सही ज्ञान कर लेते है। इस प्रकार दूरी ओर दिशा के द्वारा किसी वस्तु का सही-सही ज्ञान करना ही उस उस वस्तु की स्थिति निर्धारण कहलाता है। भौतिकी में किसी गतिमान वस्तु के बारे में किसी समय विशेष के बारे में जानकारी इसी विधि से प्राप्त की जाती है। निर्देश तंत्र   Frame  जब कसी वस्तु की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो हमें किसी एक विशेष स्थान को या बिन्दु को स्थिर मानना होता है। इस स्थिर बिन्दु को प्रेक्षण बिन्दु कहा जाता है। इसे O से निर्देशित किया जाता है। इस प्रेक्षण बिन्दु से तीन परस्पर लम्बवत दिशा का निर्धारण किया जाता है , जिन्हें क्रमशः X- अक्ष , Y- अक्ष तथा Z- अक्ष कहा जाता है। इस प्रकार निर्देश बिन्दु से किसी वस्तु की दिशा एवं दूरी का निर्धारण जिस भौतिक निकाय के द्वारा किया जाता है उसे निर्देश तंत्र कहते है। निर्देश त...

त्रुटियों का संयोजन Propagation of Errors

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  त्रुटियों का संयोजन Propagation of Errors जब कोई भौतिक राशि दो या दो से अधिक भौतिक राशियों पर निर्भर करती है तो उस राशि की माप में त्रुटि मान ज्ञात करना त्रुटियों का संयोजन कहलाता है। जोड़ , घटाव , गुणा भाग व घतीय गणनाओं के आधार पर त्रुटियों का संयोजन भी 5 प्रकार का होता है जो निम्न प्रकार है- राशियों के योग में त्रुटि राशियों के अन्तर में त्रुटि राशियों के गुणनफल में त्रुटि राशियों के विभाजन में त्रुटि घतीय फलन में त्रुटि राशियों के योग में त्रुटि जब किसी भौतिक राशि का परिमाण दो या दो से अधिक राशियों के योग पर निर्भर करता है तो इस प्रक्रिया में होने वाली त्रुटि योग त्रुटि कहलाती है। माना कोई राशि x राशि a व b से इस प्रकार सम्बन्धित है- x = a + b माना      ∆a = a ∆b = b तब ∆x = ∆a + ∆b तथा x के मान में अधिकतम निरपेक्ष त्रुटि x = [ ∆a + ∆b / a + b ] × 100%   राशियों के अन्तर में त्रुटि जब किसी भौतिक राशि का परिमाण दो या दो से अधिक राशियों के अन्तर पर निर्भर करता है तो इस प्रक्रिया में होने वाली त्रुटि अन्तर त्रु...

मापन में त्रुटि Errors of Measurement

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मापन में त्रुटि Errors of Measurement मापन की सार्थकता मापन उपकरण के अल्पतमांक पर निर्भर करती है। जितना छोटा अल्पतमांक होगा उतना ही सार्थक मापन होगा। इसके अलावा हमारे बहुत प्रयासों के बावजूद मापन की प्रक्रिया में स्वयं से भी कुछ न कुछ त्रुटि भी अवश्य हो जाती है। इन त्रुटियों के कारण राशि के वास्तविक मान तथा प्रायोगिक मान में जो अन्तर प्राप्त होता है उसे मापन की त्रुटि कहते है। यह चार प्रकार की होती है- निरपेक्ष त्रुटि माध्य निरपेक्ष त्रुटि आपेक्षिक त्रुटि या भिन्नात्माक त्रुटि प्रतिशत त्रुटि निरपेक्ष त्रुटि किसी भौतिक राशि के मापन में भौतिक राशि के वास्तविक मान तथा माप में प्राप्त मान का अन्तर निरपेक्ष त्रुटि कहलाता है।  माना एक भौतिक राशि को n बार मापा जाता है तथा इसके मापे गए मान a 1 , a 2 , a 3 , ……..,a n है तो इसके मानों का समान्तर माध्य  a m = ( a 1 + a 2 + a 3 +……..+ a n )/ n  समान्यतः a m को राशि का वास्तविक मान माना जाता है। अतः निरपेक्ष त्रुटि की परिभाषा से मापे गए मानों में निरपेक्ष त्रुटि निम्न होगी – ∆a 1 = a m - a 1 ∆a 2 = a m – ...

परिमाण की कोटि Order of Magnitude

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परिमाण की कोटि Order of Magnitude संख्याओं के वैज्ञानिक निरूपण में संख्याओं को 10 घातों के रूप में लिखा जाता है। 10 की घात का रूप ही परिमाण की कोटि कहलाती है। किसी राशि के परिमाण की कोटि लिखने के लिए निम्नलिखित नियम होते है- यदि 10 की घात के साथ गुणित संख्या 5 से छोटी है तो इसे छोड़ देते है।   यदि 10 की घात के साथ गुणित संख्या 5 अथवा 5 से बढ़ी है तो उसे छोड़ने से पहले 10 की एक घात को बढ़ा देते है।     

गणना में सार्थक अंक Significant Figures in Calculation

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गणना में सार्थक अंक Significant Figures in Calculation जोड़ , घटाव , गुणा एवं भाग की गणना के बाद जो परिणाम प्राप्त होता है उसको सार्थक अंकों में लिखने के निम्नलिखित नियम होते है- राशियों को जोड़ने अथवा घटाने के बाद प्राप्त परिणाम में दशमलव के बाद केवल उतने ही अंक लेने चाहिए जितने कि जोड़ने अथवा घटाने वाली किसी राशि में दशमलव के बाद कम से कम होते है।   दो मापी गई राशियों के गुणनफल अथवा भागफल में कुल उतने ही सार्थक अंक जितने कि कम से कम किसी दी गई राशि में है।  

निश्चित सार्थक अंक Rounding Off Figures

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निश्चित सार्थक अंक Rounding Off Figures किसी दी गई राशि को निश्चित सार्थक अंकों में व्यक्त करने के निम्नलिखित नियम होते है- यदि निश्चित सार्थक अंकों के बाद छोड़ी जाने वाली संख्या 5 से कम है तो उसके पूर्व की संख्या को अपरिवर्तित रहने देते है।   यदि छोड़ी जाने वाली संख्या 5 से अधिक है तो उससे पूर्व की संख्या को एक बढ़ा देते है।   यदि छोड़ी जाने वाली संख्या 5 है तथा उसके बाद कोई अशून्य संख्या आती है तो उसके पूर्व की संख्या को एक बढ़ा देते है।   यदि छोड़ी जाने वाली संख्या 5 है तथा उसके बाद कोई शून्य आता है तो उसके पूर्व की संख्या को अपरिवर्तित रहने देते है यदि यह सम संख्या है।   यदि छोड़ी जाने वाली संख्या 5 है तथा उसके बाद कोई शून्य आता है तो उसके पूर्व की संख्या को बढ़ा देते है यदि यह विषम संख्या है।  

सार्थक अंक Significant Figures

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सार्थक अंक Significant Figures किसी भौतिक राशि के मापन में सार्थक अंक उन अंकों की संख्या को दर्शाते है जिनसे हम गणना में पूर्ण आश्वस्त होते है। मापन की क्रिया में अधिक सार्थक अंकों का प्राप्त होना शुद्धता का परिचायक होता है।  किसी दी गई राशि के मापन में सार्थक अंकों की संख्या ज्ञात करते समय कुछ नियमों का पालन किया जाता है , जो कि निम्न प्रकार है- गणना में सभी अशून्य अंक सार्थक होते है।   दो अशून्य अंकों के बीच आने वाला शून्य अंक सार्थक होता है।   संख्या के बायीं ओर के शून्य कभी सार्थक नहीं होते।   संख्या के दायीं ओर के शून्य सार्थक अंक होते है।   चरघातांकी निरूपण में दी गई संख्या का अंकिक भाग ही सार्थक अंक होता है।   

विमीय विश्लेषण की सीमायें Limitations of Dimensional Analysis

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विमीय विश्लेषण की सीमायें   Limitations of Dimensional Analysis यद्यपि विमीय विश्लेषण बहुत उपयोगी है लेकिन इसकी भी कुछ सीमायें हैं- 1- यदि किसी भौतिक राशि की विमायें दी हैं , तो वह राशि अद्वितीय नहीं हो सकती क्योंकि कई भौतिक राशियों की विमायें समान होती हैं। उदाहरण के लिए,  यदि किसी भौतिक राशि का विमीय सूत्र [ML 2 T -2 ] है तो यह कार्य अथवा ऊर्जा अथवा बल आघूर्ण का विमीय सूत्र हो सकता है। 2- आंकिक नियतांक [ K] जैसे ( 1/2), 1 अथवा 2π  आदि की कोई विमायें नहीं होती अतः इन्हें विमीय विश्लेषण विधि द्वारा ज्ञात नहीं किया जा सकता। 3- विमीय विधि का प्रयोग गुणनफल से प्राप्त होने वाले अन्य फलनों के अतिरिक्त फलनों को व्युत्पन्न करने के लिये नहीं किया जा सकता है। जैसे –  सूत्र s = ut + at 2 /2 अथवा y = asin ω t को इस विधि द्वारा व्युत्पन्न नहीं किया जा सकता। केवल इस प्रकार के समीकरणों की सत्यता की जाँच की जा सकती है। 4- यदि यांत्रिकी में कोई भौतिक राशि तीन से अधिक राशियों पर निर्भर करती है तो विमीय विश्लेषण की विधि से सूत्र को व्युत्पन्न नहीं किया जा सकता क्योंकि इस स...

विमाओ की सहायता से नये सम्बन्धों की स्थापना करना

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  विमाओ की सहायता से नये सम्बन्धों की स्थापना करना यदि किसी भौतिक राशि की अन्य राशियों पर निर्भरता ज्ञात हो और यदि निर्भरता गुणनफल प्रकार की हो , तो विमीय विश्लेषण का उपयोग करके , राशियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। उदाहरण: 1- सरल लोलक का आवर्तकाल का सूत्र ज्ञात करना- माना सरल लोलक का अवर्तकाल T , गोलक का द्रव्यमान m , प्रभावी लम्बाई l , गुरुत्वीय त्वरण g पर निर्भर करता है तथा यह मानकर कि फलन m , l तथा g के घात फलनों के गुणनफल प्रकार का है। अर्थात T = Km x l y g z     -   ( i ) जहां K एक विमाहीन नियतांक है। यदि उपरोक्त सम्बन्ध विमीय रूप से शुद्ध है तो सभी राशियों की विमाएं रखने पर [T] = [M] x [L] y [LT -2 ] z [M 0 L 0 T 1 ] = [M x L y+z T -2z ] समान राशियों की घातों की तुलना करने पर X = 0, y = ½ तथा z = -1/2 X , y तथा z के मान उपरोक्त समीकरण (1) में रखने पर T = Km 0 l 1/2 g -1/2 या T = K√ ( l / g ) विमाहीन नियतांक K का मान प्रयोगों द्वारा 2 π होता है अतः सरल लोलक का आवर्तकाल T = 2 π√ ( l / g ) 2-  स्...

दिये गये भौतिक सम्बंध की विमीय रूप से सत्यता की जाँच करना

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दिये गये भौतिक सम्बंध की विमीय रूप से सत्यता की जाँच करना यह "विमीय ऐक्यता के सिद्धांत ” पर आधारित है। इस सिद्धांत के अनुसार समीकरण के दोनों ओर के प्रत्येक पदों की विमायें अवश्य समान होनी चाहिए। यदि X = A ± (BC) 2 ± √DEF तो विमीय समांगता के सिद्धान्त से   [ X ] = [ A ] ± [ (BC) ] 2 ± [ √DEF ] यदि दोनों ओर के प्रत्येक पद की विमायें समान हैं तो समीकरण विमीय रूप से शुद्ध होगा अन्यथा नहीं। विमीय रूप से शुद्ध समीकरण आंकिक रूप से शुद्ध हो सकता है और नहीं भी। उदाहरण : 1- अभिकेन्द्र बल के सूत्र की जाँच करना-   अभिकेन्द्र बल का भौतिक सूत्र F = mv 2 /r 2 विमीय समांगता के सिद्धान्त से दोनों और की विमाएं समान होनी चाहिए [MLT -2 ] = [M][LT -2 ]/[L 2 ] [MLT -2 ] = [MT -2 ] चूँकि उपरोक्त समीकरण में दोनों ओर की विमाएं सामन नहीं है अतः यह सूत्र विमीय रूप से शुद्ध नहीं है। इस प्रकार यह समीकरण भौतिक रूप से गलत है। 2- गति के द्वितीय समीकरण की जाँच करना-   गति की द्वितीय समीकरण s = ut – at 2 /2 दोनों ओर की विमाएं रखने पर [L] = [LT -1 ][T] – [LT -2 ][T 2 ] ...

किसी भौतिक राशि को एक पद्धति से अन्य पद्धति में बदलना

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किसी भौतिक राशि को एक पद्धति से अन्य पद्धति में बदलना किसी भी भौतिक राशि की माप P = nu नियत होती है। इसी आधार पर हम किसी भी भौतिक राशि को एक मात्रक पद्धति से दूसरे मात्रक पद्धति में बदल सकते है।  यदि किसी भौतिक राशि X का विमीय सूत्र [M a L b T c ] है तथा यदि भौतिक राशि के व्युत्पन्न मात्रक दो भिन्न पद्धतियों में क्रमशः [M 1 a L 1 b T 1 c ] तथा [M 2 a L 2 b T 2 c ] हैं तथा क्रमशः n 1 और n 2 इन दो पद्धतियों में आंकिक मान है तो n 1 u 1 = n 2 u 2 n 1 [M 1 a L 1 b T 1 c ] = n 2 [M 2 a L 2 b T 2 c ] n 2 = n 1 [M 2 a L 2 b T 2 c ]/ [M 1 a L 1 b T 1 c ] n 2 = n 1 [M 1 a /M 2 a ][L 1 b /L 2 b ][T 1 c /T 2 c ] n 2 = n 1 [M 1 /M 2 ] a [L 1 /L 2 ] b [T 1 /T 2 ] c जहाँ M 1 , L 1 , T 1 प्रथम पद्धति में क्रमशः द्रव्यमान, लम्बाई और समय के मूल मात्रक है तथा M 2 , L 2 , T 2 द्वितीय पद्धति में क्रमश द्रव्यमान, लम्बाई और समय के मूल मात्रक है। अतः दोनों पद्धतियों में मूल मात्रकों के मान ज्ञात होने पर तथा प्रथम पद्धति में आंकिक मान ज्ञात होने पर अन्य पद्धति में भी आंकिक मान ज्ञा...

भौतिक नियतांक अथवा गुणांक की विमायें ज्ञात करना

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भौतिक नियतांक अथवा गुणांक की विमायें ज्ञात करना चूंकि किसी भौतिक राशि की विमायें अद्वितीय होती हैं। अतः हमें सर्वप्रथम ऐसा सूत्र अथवा व्यंजक लिखना चाहिए जिसमें वह नियतांक प्रयुक्त होता हो जिसकी विमा ज्ञात करनी है। तत्पश्चात् उस सूत्र में शेष सभी राशियों की विमाओं को प्रतिस्थापित करके , अज्ञात नियतांक की विमा प्राप्त की जा सकती है। जैसे- 1- गुरुत्वाकर्षण नियतांक न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम से- F = Gm 1 m 2 /r 2 अथवा G = Fr 2 / m 1 m 2 सभी भौतिक राशियों की विमाएं रखने पर [G] = [MLT -2 ]/[M][M] अतः गुरुत्वाकर्षण नियतांक G की विमा = [M -1 L 3 T -2 ] 2-  प्लांक नियतांक प्लांक के अनुसार E = h ν अथवा h = E / ν सभी भौतिक राशियों की विमाएं रखने पर [h] = [ ML 2 T -2 ]/[T -1 ] अतः प्लांक नियतांक h की विमा = [ ML 2 T -1 ] 3-  श्यानता गुणांक पॉइसली सूत्र के अनुसार dV/dt = π ρ r 4 /8 η l η = π ρ r 4 /8 l(dV/dt) सभी भौतिक राशियों की विमाएं रखने पर [ η ] = [ML -1 T -2 ][L 4 ]/[L][L 3 /T] [ η ] = [ML -1 T -2 ][L 4 ][T]/[L][L 3 ] अतः श्या...