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मापन में त्रुटि Errors of Measurement

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मापन में त्रुटि Errors of Measurement मापन की सार्थकता मापन उपकरण के अल्पतमांक पर निर्भर करती है। जितना छोटा अल्पतमांक होगा उतना ही सार्थक मापन होगा। इसके अलावा हमारे बहुत प्रयासों के बावजूद मापन की प्रक्रिया में स्वयं से भी कुछ न कुछ त्रुटि भी अवश्य हो जाती है। इन त्रुटियों के कारण राशि के वास्तविक मान तथा प्रायोगिक मान में जो अन्तर प्राप्त होता है उसे मापन की त्रुटि कहते है। यह चार प्रकार की होती है- निरपेक्ष त्रुटि माध्य निरपेक्ष त्रुटि आपेक्षिक त्रुटि या भिन्नात्माक त्रुटि प्रतिशत त्रुटि निरपेक्ष त्रुटि किसी भौतिक राशि के मापन में भौतिक राशि के वास्तविक मान तथा माप में प्राप्त मान का अन्तर निरपेक्ष त्रुटि कहलाता है।  माना एक भौतिक राशि को n बार मापा जाता है तथा इसके मापे गए मान a 1 , a 2 , a 3 , ……..,a n है तो इसके मानों का समान्तर माध्य  a m = ( a 1 + a 2 + a 3 +……..+ a n )/ n  समान्यतः a m को राशि का वास्तविक मान माना जाता है। अतः निरपेक्ष त्रुटि की परिभाषा से मापे गए मानों में निरपेक्ष त्रुटि निम्न होगी – ∆a 1 = a m - a 1 ∆a 2 = a m – ...

परिमाण की कोटि Order of Magnitude

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परिमाण की कोटि Order of Magnitude संख्याओं के वैज्ञानिक निरूपण में संख्याओं को 10 घातों के रूप में लिखा जाता है। 10 की घात का रूप ही परिमाण की कोटि कहलाती है। किसी राशि के परिमाण की कोटि लिखने के लिए निम्नलिखित नियम होते है- यदि 10 की घात के साथ गुणित संख्या 5 से छोटी है तो इसे छोड़ देते है।   यदि 10 की घात के साथ गुणित संख्या 5 अथवा 5 से बढ़ी है तो उसे छोड़ने से पहले 10 की एक घात को बढ़ा देते है।     

गणना में सार्थक अंक Significant Figures in Calculation

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गणना में सार्थक अंक Significant Figures in Calculation जोड़ , घटाव , गुणा एवं भाग की गणना के बाद जो परिणाम प्राप्त होता है उसको सार्थक अंकों में लिखने के निम्नलिखित नियम होते है- राशियों को जोड़ने अथवा घटाने के बाद प्राप्त परिणाम में दशमलव के बाद केवल उतने ही अंक लेने चाहिए जितने कि जोड़ने अथवा घटाने वाली किसी राशि में दशमलव के बाद कम से कम होते है।   दो मापी गई राशियों के गुणनफल अथवा भागफल में कुल उतने ही सार्थक अंक जितने कि कम से कम किसी दी गई राशि में है।  

निश्चित सार्थक अंक Rounding Off Figures

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निश्चित सार्थक अंक Rounding Off Figures किसी दी गई राशि को निश्चित सार्थक अंकों में व्यक्त करने के निम्नलिखित नियम होते है- यदि निश्चित सार्थक अंकों के बाद छोड़ी जाने वाली संख्या 5 से कम है तो उसके पूर्व की संख्या को अपरिवर्तित रहने देते है।   यदि छोड़ी जाने वाली संख्या 5 से अधिक है तो उससे पूर्व की संख्या को एक बढ़ा देते है।   यदि छोड़ी जाने वाली संख्या 5 है तथा उसके बाद कोई अशून्य संख्या आती है तो उसके पूर्व की संख्या को एक बढ़ा देते है।   यदि छोड़ी जाने वाली संख्या 5 है तथा उसके बाद कोई शून्य आता है तो उसके पूर्व की संख्या को अपरिवर्तित रहने देते है यदि यह सम संख्या है।   यदि छोड़ी जाने वाली संख्या 5 है तथा उसके बाद कोई शून्य आता है तो उसके पूर्व की संख्या को बढ़ा देते है यदि यह विषम संख्या है।  

सार्थक अंक Significant Figures

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सार्थक अंक Significant Figures किसी भौतिक राशि के मापन में सार्थक अंक उन अंकों की संख्या को दर्शाते है जिनसे हम गणना में पूर्ण आश्वस्त होते है। मापन की क्रिया में अधिक सार्थक अंकों का प्राप्त होना शुद्धता का परिचायक होता है।  किसी दी गई राशि के मापन में सार्थक अंकों की संख्या ज्ञात करते समय कुछ नियमों का पालन किया जाता है , जो कि निम्न प्रकार है- गणना में सभी अशून्य अंक सार्थक होते है।   दो अशून्य अंकों के बीच आने वाला शून्य अंक सार्थक होता है।   संख्या के बायीं ओर के शून्य कभी सार्थक नहीं होते।   संख्या के दायीं ओर के शून्य सार्थक अंक होते है।   चरघातांकी निरूपण में दी गई संख्या का अंकिक भाग ही सार्थक अंक होता है।   

विमीय विश्लेषण की सीमायें Limitations of Dimensional Analysis

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विमीय विश्लेषण की सीमायें   Limitations of Dimensional Analysis यद्यपि विमीय विश्लेषण बहुत उपयोगी है लेकिन इसकी भी कुछ सीमायें हैं- 1- यदि किसी भौतिक राशि की विमायें दी हैं , तो वह राशि अद्वितीय नहीं हो सकती क्योंकि कई भौतिक राशियों की विमायें समान होती हैं। उदाहरण के लिए,  यदि किसी भौतिक राशि का विमीय सूत्र [ML 2 T -2 ] है तो यह कार्य अथवा ऊर्जा अथवा बल आघूर्ण का विमीय सूत्र हो सकता है। 2- आंकिक नियतांक [ K] जैसे ( 1/2), 1 अथवा 2π  आदि की कोई विमायें नहीं होती अतः इन्हें विमीय विश्लेषण विधि द्वारा ज्ञात नहीं किया जा सकता। 3- विमीय विधि का प्रयोग गुणनफल से प्राप्त होने वाले अन्य फलनों के अतिरिक्त फलनों को व्युत्पन्न करने के लिये नहीं किया जा सकता है। जैसे –  सूत्र s = ut + at 2 /2 अथवा y = asin ω t को इस विधि द्वारा व्युत्पन्न नहीं किया जा सकता। केवल इस प्रकार के समीकरणों की सत्यता की जाँच की जा सकती है। 4- यदि यांत्रिकी में कोई भौतिक राशि तीन से अधिक राशियों पर निर्भर करती है तो विमीय विश्लेषण की विधि से सूत्र को व्युत्पन्न नहीं किया जा सकता क्योंकि इस स...

विमाओ की सहायता से नये सम्बन्धों की स्थापना करना

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  विमाओ की सहायता से नये सम्बन्धों की स्थापना करना यदि किसी भौतिक राशि की अन्य राशियों पर निर्भरता ज्ञात हो और यदि निर्भरता गुणनफल प्रकार की हो , तो विमीय विश्लेषण का उपयोग करके , राशियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। उदाहरण: 1- सरल लोलक का आवर्तकाल का सूत्र ज्ञात करना- माना सरल लोलक का अवर्तकाल T , गोलक का द्रव्यमान m , प्रभावी लम्बाई l , गुरुत्वीय त्वरण g पर निर्भर करता है तथा यह मानकर कि फलन m , l तथा g के घात फलनों के गुणनफल प्रकार का है। अर्थात T = Km x l y g z     -   ( i ) जहां K एक विमाहीन नियतांक है। यदि उपरोक्त सम्बन्ध विमीय रूप से शुद्ध है तो सभी राशियों की विमाएं रखने पर [T] = [M] x [L] y [LT -2 ] z [M 0 L 0 T 1 ] = [M x L y+z T -2z ] समान राशियों की घातों की तुलना करने पर X = 0, y = ½ तथा z = -1/2 X , y तथा z के मान उपरोक्त समीकरण (1) में रखने पर T = Km 0 l 1/2 g -1/2 या T = K√ ( l / g ) विमाहीन नियतांक K का मान प्रयोगों द्वारा 2 π होता है अतः सरल लोलक का आवर्तकाल T = 2 π√ ( l / g ) 2-  स्...